Tuesday, September 21, 2010

चोरी है काम मेरा

भारतीय सिनेमा में कुछ ऐसी फिल्में हैं, जिनके लिए कहा जाता है कि उन्होंने हिंदी सिनेमा का इतिहास बदल दिया, पर वास्तविकता कुछ और है. दरअसल इसके लिए निर्देशक-लेखक को बधाई नहीं दी जानी चाहिए. शक्ति सामंत की फिल्म आराधना के गीतों ने न जाने कितने युवाओं के मन में अपने सपनों की रानी की कल्पना को शक्ल दे दी थी. उस दौर के युवकों ने न जाने कितनी हसीनाओं को रूप तेरा मस्ताना गीत सुनाकर दिल दिया होगा. इस फिल्म ने उस दौर के आशिकों के दिल में इश्क़ की आग लगा दी थी, लेकिन यह फिल्म शक्ति दा का ओरिजनल कांसेप्ट न होकर हॉलीवुड की टू इच हीज ऑन की नक़ल मात्र थी. इसी तरह ऋषिकेश मुखर्जी द्वारा निर्देशित फिल्म अभिमान ने जया बच्चन को फिल्मफेयर बेस्ट एक्ट्रेस का पुरस्कार दिलवाया था. यह फिल्म ए स्टार इज बॉर्न की नक़ल थी. 90 के दशक में महेश भट्ट की सुपरहिट फिल्म साथी से पाकिस्तानी क्रिकेटर मोहसिन खान एवं आदित्य पंचोली स्टार बन गए थे. जबकि साथी को मिलने वाली सफलता और अवार्ड के सही हक़दार स्कारफेस के लेखक थे, क्योंकि यह सुपरहिट फिल्म भी एक नक़ल थी.

नरेंद्र बेदी की खोटे सिक्के एवं फिरोज़ खान की धर्मात्मा से लेकर रामू की सरकार जैसी फिल्मों को हिंदी सिनेमा में क्रांतिकारी बदलाव लाने के लिए याद किया जाता है, लेकिन यह सारे बदलाव दूसरे मुल्क़ों की कहानियों को चुराकर किए गए. 1980 में ऋृ षि कपूर स्टारर फिल्म क़र्ज़ ने सुभाष घई को शीर्ष निर्देशकों की कतार में लाकर खड़ा कर दिया, लेकिन तब शायद ही कोई जानता होगा कि यह फिल्म 1960 में आई हॉलीवुड फिल्म द रिइंकारनेशन ऑफ पीटर प्राउड की नक़ल थी. रवि चोपड़ा द्वारा निर्देशित फिल्म द बर्निंग ट्रेन वर्ष 1975 में आई जापानी फिल्म द शिंकनसेन दैबाकुहा की नक़ल थी. अशोक कुमार की हास्य पटकथा वाली बासु चटर्जी द्वारा निर्देशित फिल्म शौक़ीन हॉलीवुड की फिल्म द ब्वॉयज नाइट आउट की नक़ल थी. राकेश रोशन द्वारा निर्देशित फिल्म खून भरी मांग, जिसे तीन फिल्म फेयर अवार्ड मिले, वह भी ऑस्ट्रेलियन लघु फिल्म रिटर्न टू एडेन से प्रेरित थी. मुकुल आनंद द्वारा निर्देशित फिल्म अग्निपथ को दो फिल्मफेयर अवार्ड मिले और बेस्ट एक्टिंग के लिए अमिताभ बच्चन को नेशनल फिल्म अवार्ड मिला, जिसके हक़दार वे लोग कतई नहीं थे. निर्देशक संजय ग़ढवी के मुताबिक़ अमेरिका में अच्छे लेखक हैं, जबकि यहां अच्छे लेखकों की कमी है, इसलिए प्रेरणा लेने में कोई बुराई नहीं है. ग़ौरतलब है कि उनकी फिल्म मेरे यार की शादी है, जूलिया रॉबटर्‌‌स की सुपरहिट फिल्म माई बेस्ट फ्रेंड्‌स वेडिंग की नक़ल थी. बॉलीवुड में कलाकारों के कॉस्ट्यूम और नाच-गाने पर ज़्यादा ध्यान दिया जाता है, जबकि हॉलीवुड में फिल्म की स्क्रिप्ट और प्रोडक्शन हाउस ज़्यादा मायने रखते हैं. बॉलीवुड में वेस्टर्न फिल्मों की नक़ल का स़िर्फ नए लोग ही नहीं करते बल्कि इस मामले में इंटेलिजेंट इडियट आमिर खान भी पीछे नहीं है. उनकी सुपरहिट फिल्म गजनी बॉलीवुड की पहली ऐसी फिल्म थी, जिसने बॉक्स ऑफिस पर एक बिलियन रुपये से अधिक का कारोबार किया. यह फिल्म साउथ की सूर्या स्टारर गजनी की रीमेक थी और साउथ वाली गजनी हॉलीवुड फिल्म मोमेंटो की नक़ल थी. मतलब वही चोरी का क़िस्सा. ग़ौरतलब है कि मोमेंटो को वर्ष 2002 में बेस्ट स्क्रीनप्ले के लिए नामांकित किया गया था. बॉलीवुड की नक़ल करने की इस आदत पर वर्ष 2006 में फोर स्टेप प्लान नामक एक डॉक्यूमेंट्री भी बनी.

वर्ष 1940 में आई महबूब खान की फिल्म औरत को सत्रह साल बाद मदर इंडिया के नाम से दोबारा बनाया गया, वह भी वर्ष 1937 में आई हॉलीवुड फिल्म द गुड अर्थ से प्रेरित थी. बॉलीवुड की ऑल टाइम सुपरहिट फिल्म शोले का निर्माण सात हॉलीवुड फिल्मों की प्रेरणा से हुआ था. उनमें वंस अपॉन ए टाइम इन द वेस्ट (1968), स्पैगिटी वेस्टर्न, द वाइल्ड बंच (1969), पैट गैरेट एंड बिली द किड (1973) और बच कैसिडी एंड द संडेंस किड (1969) आदि प्रमुख हैं. अमिताभ बच्चन की पा 1996 में आई हॉलीवुड फिल्म जैक की नक़ल है. अक्षय कुमार की आने वाली फिल्म एक्शन रिप्ले ब्रैड पिट की सुपरहिट फिल्म द क्यूरियस केस ऑफ बेंजामिन बटन से प्रेरित बताई जा रही है. हासिल फेम निर्देशक तिग्मांशु धूलिया कहते हैं कि उनकी ओरिजनल कहानी पर आधारित फिल्म को कोई भी प्रोड्यूसर फाइनेंस नहीं करना चाहता. तिग्मांशु को अपनी फिल्म के निर्माण के लिए अपने दोस्तों पर निर्भर रहना पड़ा था. इस इंडस्ट्री में स़िर्फ निर्देशकों और कहानीकारों को ही हॉलीवुड की नक़ल करने का भूत नहीं सवार है, बल्कि निर्माता भी किसी फिल्म में पैसा लगाने से पहले यह निश्चित कर लेते हैं कि अमुक फिल्म हॉलीवुड की किसी फिल्म की नक़ल है या नहीं. ऐसी सैकड़ों फिल्में हैं, जिन्हें हॉलीवुड की फिल्मों से नक़ल करके तैयार किया गया है. इन फिल्मों के हिट हो जाने के बाद निर्देशक, निर्माता और कलाकार पुरस्कार लेने के लिए कतार में खड़े नज़र आते हैं. इनमें से कइयों को अवार्ड मिल भी जाते हैं. पुरस्कार क्या, पद्मश्री तक मिल जाती है. अवार्ड देने से पहले और बाद में ज्यूरी मेंबर यह सोचने की ज़हमत तक नहीं उठाते कि क्या सचमुच यह लोग इन पुरस्कारों के हक़दार हैं भी या नहीं.

उधर का माल इधर

अभिमान 1973- ए स्टार इज बॉर्न 1954

धर्मात्मा 1975- द गॉड फादर 1972

रफूचक्कर 1975- सम लाइक इट हॉट 1959

क़र्ज़ 1980- द रिइंकारनेशन ऑफ पीटर प्राउड 1960

द बर्निंग ट्रेन 1980- द शिंकनसेन दैबाकुहा 1975

शौक़ीन 1981- द ब्वॉयज नाइट आउट 1962

जांबाज़ 1981- डुअल इन द सन 1946

सत्ते पे सत्ता 1982- सेवन ब्राइड्‌स फॉर सेवन ब्रदर्स 1954

खून भरी मांग 1988- रिटर्न टू एडेन 1983

तेज़ाब 1988- स्ट्रीट्‌स ऑफ फायर 1984

साथी 1990- स्कारफेस 1983

दिल है कि मानता नहीं 1991- इट हैपंड वन नाइट 1934

जो जीता वही सिकंदर 1992- बे्रकिंग अवे 1979

चमत्कार 1992- ब्लैक बियडर्‌‌स गोस्ट 1968

बाज़ीगर 1993- ए किस बिफोर डाइंग 1991

खलनायिका 1993- द हैंड दैट रॉक्स द क्रौडल 1992

मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी 1994- द हार्ड वे 1991

अकेले हम अकेले तुम 1995- क्रैमर वर्सेस क्रैमर 1979

याराना 1995 - स्लीपिंग विथ एनेमी 1991

पापी गुड़िया 1996- चाइल्ड्‌र्स प्ले 1988

चोर मचाए शोर 1997- ब्लू स्ट्रीक

गुलाम 1998- ऑन द वाटर फ्रंट 1954

दुश्मन 1998- आई फॉर एन आई 1996

मोहब्बतें 2000- डेड पोएट्‌स सोसाइटी 1989

क़सूर 2001- जैग्ड ऐज 1985

कांटे 2002- रिजर्वायर डॉग्स 1992

राज़ 2002- वाट लायज बिनिथ 2000

धूम 2003- द फास्ट एंड द फ्यूरियस 2001 एवं ओसियंस एलेवन 2001

जिस्म 2003- बॉडी हीट 1981

कोई मिल गया 2003- ई. टी. द एक्सट्रा टेरेसट्रियल 1982

हम तुम 2004- वेन हैरी मेट सैली 1989

मुन्ना भाई एमबीबीएस 2003- पैच एडम्स 1998

मर्डर 2004- अनफेथफुल 2002

सलाम नमस्ते 2005- नाइन मंथ्स 1995

ब्लैक 2005- द मिराकल वर्कर 1962

बंटी और बबली 2005- बोनी एंड क्लायड 1967

सरकार 2005- द गॉड फादर 1972

रंग दे बसंती 2006- ऑल माई संस 1948 एवं जीसस ऑफ मांट्रील 1989

कृष 2006- पे चेक 2003

चक दे इंडिया 2007- मिराकल 2004

भेजा फ्राई 2007- डिनर डे कॉन्स 1998

लाइफ इन ए मेट्रो 2007- द अपार्टमेंट 1960

हे बेबी 2007- थ्री मेन एंड अ बेबी 1987

वेलकम 2007- मिक्की ब्लू आइज 1999

सिंह इज किंग 2008- मिराकल्स 1989

दोस्ताना 2008- नाउ प्रोनाउंस यू चक एंड लैरी 2007

युवराज 2008- रेन मैन 1988


गीत चोरी का आरोप कितना सच

प्रख्यात गायक भूपेन हजारिका द्वारा गाई गई रचना- गंगा तुम बहती हो क्यों, उनकी मौलिक कृति नहीं है. उन्होंने संगीत रचना एवं गीत की भावनाएं अमेरिकी कलाकार की एक मशहूर रचना से कॉपी की थी. यह रहस्योघाट्‌न अमेरिका में रह रहे एक भारतीय मुकेश थामस ने पिछले दिनों दोनों संगीत प्रस्तुतियों के गहन अध्ययन के बाद किया है.

वर्ष 1927 में अमेरिका के संगीतकार जूलियस ब्लेडसो की एक संगीत रचना ओल्ड मेन रिवर ऑफ शो वोट संगीत के इतिहास की एक अमर कृति है. इस कृति के जनक को इस संगीत रचना के लिए अमेरिका ही नहीं, समूचे यूरोप में हमेशा से स्मरण किया जाता रहा है. आज से डेढ़ दशक पूर्व इंटरनेट की सुविधा न होने की वजह से अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों पर शोध कर पाना भारत में संभव नहीं था. भूपेंन हजारिका ने अपनी रचना-विस्तार है आपार, की प्रस्तुति के दौरान कभी भी किसी भी मंच पर यह घोषणा नहीं की कि गंगा उनकी मौलिक रचना नहीं है.


उन्होंने कभी भी अमेरिका के प्रख्यात संगीतकार जूलियस ब्लेडसो का नाम नहीं लिया. पूरे भारत में, गंगा तुम बहती हो क्यों रचना भूपेन हजारिका द्वारा लिपिवद्ध, संगीतवद्ध और गाई गई रचना के रूप में जानी जाती है. जूलियस के इस चर्चित गीत को अमेरिका के कई कलाकारों ने विभिन्न मंचों पर गाया है. इसके अलावा कई टीवी कार्यक्रमों में भी यह गीत उपयोग किया गया है. पालाबिंसन ने 1928, 1932 एवं 1936 में इस गीत को फिल्म में चित्रित किया है. बिंग क्रासवी, फ्रैड सिनड्रा, सैम कुक, अल जानसन, रेचार्ल्स, जिम क्रोस, जिमी रिक्स ने इसे अमेरिकी शास्त्रीय संगीत के प्रमुख गीत के रूप में स्वीकार किया था. मेल्विन फैडलिन ने तो इस गीत को कई महफिलों में गाया था. जुड़ी गारलैंड ने भी इस गीत को अपना स्वर दिया था.

मुकेश थामस के अनुसार, भूपेन हजारिका ने अपनी पीएचडी की डिग्री कोलंबिया यूनिवर्सिटी से पूरी की थी. इस अध्ययन के दौरान वे पाल रॉबिंसन जैसे गायक के सहयोगी भी रहे थे. इस दौर में भूपेन हजारिका ने जो गीत सीखे उनका प्रदर्शन उन्होंने अपने शेष जीवन की संगीत रचनाओं में भारत में रहकर किया था. भूपेन हजारिका द्वारा गाई गई रचना- गंगा तुम बहती हो क्यों, भारत के संगीत जगत में एक नया अध्याय जोड़ने वाली कृति के रूप में याद की जाती है. स्वरों के उतार चढ़ाव और भाषा की मौलिकता इस गीत की खूबी है. मूल रूप से गाई गई जूलियस ब्लेडसे की रचना भी मिसीसिपी नदी पर आधारित है. इस गीत के भाव को महसूस करने के बाद भूपेन की रचना चोरी की गई प्रतीत होती है.

मुकेश थामस इन दिनों अमेरिका में रह कर भारतीय संगीत पर यूरोपीय प्रभाव का व्यापक अध्ययन कर रहे हैं. उनका दावा है कि भूपेन हजारिका के बारे में इस तरह के खुलासे से भारतीय संगीत प्रेमियों को आघात लग सकता है, लेकिन यही सच्चाई है.

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